नवउदारवाद आर्थिक नीतियों की एक श्रेणी है जिसका भारत में पिछले तीन दशकों के दौरान व्यापक विस्तार एवं विकास हुआ है। यधपि भारत में यह शब्द ज्यादा प्रचलित नहीं हैं, लेकिन फिर भी यहाँ इसके प्रभावों को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। आज वैश्विकरण एवं भूमंडलीकरण के दौर में वाणिज्यिक क्रियाएं एवं व्यापारिक क्रियाएं किसी एक देश की आतंरिक सीमाओं के भीतर तक ही सीमित नहीं रही हैं बल्कि उन क्रियाओं की मांग एवं आपूर्ति अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक होने लगी हैं। वर्तमान वैश्विक और प्रतिस्पर्धी व्यवसायिक एवं वाणिज्यिक वातावरण में लगातार नवाचार अपेक्षित है, इस तरह से राष्ट्रीय एवं बहुर्राष्ट्रीय उपक्रम एक तरह से भूमंडलीय उत्पादन, विकास और रोजगार को प्रोत्साहन देने, प्रोद्योगिकी उपलब्धियों का विस्तार करने तथा वैश्विक स्तर पर वस्तुओं एवं सेवाओं के वितरण को प्रोत्साहित करने का माध्यम बन गयी है।
प्रस्तुत पुस्तक वर्तमान समय में भारत देश को विकसित बनाने के सन्दर्भ में हो रहे आर्थिक और वाणिज्यिक परिवर्तनों का वाणिज्य शिक्षा को विशेषतः विकास की नजर से देखा जा रहा है । इसके साथ ही ऐसा परिलक्षित होता है कि वाणिज्य शिक्षा पूर्ण रूपेण कौशल एवं पेशेवर लोगों को तैयार कर रही है । प्रस्तुत पुस्तक में प्रमुखतः वाणिज्य के क्षेत्र में परिवर्तनों का वाणिज्य शिक्षा पर हुए प्रभाव का उल्लेख किया गया है।