Batkahi by ASK Singh

बतकही (भोजपुरी) - Batkahi (Bhojpuri)

Author- आद्या शक्ति कुमार सिंह ASK Singh

आपन मन के बात, आपन मातृभाषा में आसानी से कहल या लिखल जा सकेला। मन में अगर भोजपुरी में विचार आवे त ओकरा के भोजपुरी में लिखल आसान हो जाला। भोजपुरी के क्षेत्र देस के बड़ भाग अऊर कुछ विदेसन मे भी फइलल बा लेकिन एकर आत्मा गाँव में बसेला। गाँव के माहौल, ऊहां के आबो हवा, रहन-सहन, लोग-बाग से जुड़ल कुछ बात-विचार किताब के रूप में पेश कइल गइल बा। बतकही के कवनो ओर छोर ना होला, ऐकरा के समय अऊर के घेरा में ना रखल जा सकेला। दू या दू से अधिक आदमी कहीं भी बइठ के बिना लाग लपेट के गाँव से लेकर देश-विदेश के राजनिती पर, त्रेता से लेके कलयुग के भक्ति पर, राम बहाल के भईंस से लेकर मगरु के मेहरारु पर, इतिहास, भूगोल से लेके मौसम के हाल पर बतकही कर सकेला। खैनी, बीड़ी अऊर चाय बतकही के मजा बढ़ा देला।
लड़काई में हमनी के हिन्दी समाचार पत्र में चतुरी चाचा के चिट्ठी के इन्तजार करीं जा। भोजपुरी भाशा में जवन मिठास अऊर भाव के बतावे के गुन बा ऊ कवनो अऊरी भाशा में नइखे फिर भी भोजपुरी बोले अऊरी समझे वालन के अनुपात में भोजपुरी में पत्र-पत्रिका अऊरी साहित्य नइखे। हिन्दी, भोजपुरी के बड़ बहिन ह, ऐसे हिन्दी के शब्दन के भोजपुरी म प्रयोग कइला से कौनो अन्तर नइखे पड़े के लेकिन अंग्रेजी भाषा के हबक्का मरला से खाली भोजपुरी भाशा के ही ना बल्कि भोजपुरी भाषी लोगन के रहन-सहन अऊर बात-विचारपर भी खराब असर पड़े लागल बा। माई-बाबू के आपन लागे वाला बोली,मम्मी-पापा के रूखर शब्दन में बदलत बा। फुफा, मौसा, मामा अऊर चाचा शब्द खाली एगो अंकल शब्द में लपेटल जात बा। बड़ छोट के फर्क मिटा के खाली ‘यू’ शब्द कहल जात बा। जनमदिन पर गाँव में भी हलुआ के जगह केक खाइल जात बा।
अंग्रेजी भाषा के कारण हमनी के खान-पान, रहन-सहन, खेल-कूद अऊर बात-विचार पर लगातार असर पड़त बा। दिखावा खातिर लोग अपनापन के छोड़ देत बा।
एक बार हमनी के जर्मनी घूमे गइल रहली जा। एगो स्थानीय रेलगाड़ी पर चढ़ला के बाद बुझाइल कि हमनी के उल्टा दिषा में जात बानी जा। हमनी के बात सुनके एगो अन्जान लइकी भोजपुरी में ठीक रस्ता बतावे लागल। विदेश में भोजपुरी बोलत लइकी के देख के हमनी के बहुत ख़ुशी अऊर अचम्भा भईल। पूछला पर पता चलल कि ऊ लइकी मारीशस के रहे वाली ह लेकिन ओ समय त लागे कि हमनी के केहू भुलाइल सवांग से भेट भइल बा। ऊ लइकी बेचारी अगिला स्टेशन पर उतर के हमनी के सही रेलगाड़ी में बइठा के अपने दोसर ट्रेन पकड़लस। तब लागल कि भोजपुरी से हजारो मील के दूरी खतम हो गइल।
बतकही में गाँव के रहन-सहन, बात-विचार, हँसी ठिठोली, कथा कहानी खेल-खिलाड़ी के साथ कुछ लोगन के जिवनी अऊर राजनिती भी सुनावल गइल बा। उम्मीद बा कि बतकही अऊर बतकूचन से जवन बतरस मिली ओकर स्वाद, पढ़नियार लोगन के निमन लागी।

-आद्या शक्ति कुमार सिंह