कुछ तुम कहो, कुछ मैं कहूँ by विनोद सागर

कुछ तुम कहो, कुछ मैं कहूँ

विनोद सागर

मैंने ‘कुछ तुम कहो कुछ मैं कहूँ’ काव्य-संग्रह को ‘यादों में तुम’ (काव्य-संग्रह) की तरह ही पूरी तरह से प्रेम पर केंद्रित किया है और अपनी कविताओं के द्वारा प्रेम के विविध आयामों को पाठकों एवं समीक्षकों के समक्ष लाने का पूरा प्रयास किया है। इस काव्य-संग्रह में मैंने एक नया प्रयोग करने की कोशिश भी की है। प्रस्तुत काव्य-संग्रह में कुल एक सौ इक्कीस प्रेम-कविताएँ हैं और मज़े की बात यह है कि जहाँ पहली कविता प्रेमी के पक्ष से लिखी है, वहीं दूसरी कविता प्रेमिका के पक्ष से लिखी है। मैंने इस काव्य-संग्रह के माध्यम से भौतिकवादी प्रेम से प्रेमी एवं प्रेमिकाओं को बचने की नसीहत देने की कोशिश की है, वहीं प्रेम पर लिखे प्रमुख बिन्दुओं द्वारा प्रेम को सफलता एवं सफल जीवन से जोड़ने का अकिंचन-सा प्रयास किया है, जो आपको पसंद आएगा।