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हमारे देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है और कृषि अप्रत्याशित मानसून पर निर्भर है। कभी बाढ़ की विनाशलीला और कभी सूखे की चपेट किसानों को गरीबी से उबरने नहीं देती। बेरोजगारी भी एक ज्वलंत समस्या है। कृषि एवं पशुपालन आधारित अन्य व्यवसाय किसानों एवं बेरोजगार युवाओं के लिए नियमित पारिवारिक आय का माध्यम हो सकती है। डा0 प्रशांत जयबर्द्धन की पुस्तक "आजीविका प्रबंधनष" इसी दिशा में एक सार्थक तथा सराहनीय प्रयास है।
पशुपालन के लिए पशुओं की देखभाल एवं स्वास्थ्य की जानकारी रखना अति आवश्यक है। फ्र्रिजियन एवं जर्सी नस्लों से प्राप्त संकर गाय झारखंड प्रदेश के पशुपालकों के लिए विशेष लाभकारी और लोकप्रिय हो रही है। एक गाय लगभग 20 हजार प्रति माह की आय का स्रोत है।
बकरी ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ है और इससे प्राप्त होनेवाली वस्तुएं, दूध, बाल, त्वचा, जैविक खाद इत्यादि सभी प्रकार से लाभदायक है। बकरी का दूध शिशुओं के लिए सुपाच्य एवं मां के दूध के समतुल्य है। इसमें रोग-निरोधक गुण भी मौजूद हैं। बकरी पालन में थोड़ी सावधानी और जानकारी से अधिक से अधिक मुनाफा प्राप्त किया जा सकता है।
ग्रामीण परिवेश में ब्रायलर उत्पादन संभव नहीं हो पाता तथापि आदिवासी क्षेत्रों में बैक्यार्ड पद्धति से मुर्गी पालन संभव है। विविध रंगों की मुर्गियों को स्थानीय सांस्कृतिक एवं परंपरागत मान्यताओं के कारण विशेष महत्व दिया जाता है। विशेष रूप से झारखंड के लिए विकसित मुर्गी का नई किस्म ष्झारसीमष् को देशी मुर्गियों की तरह ही पाला जा सकता है।
बत्तख पालन व्यवसाय की हमारे प्रदेश में बड़ी संभावना है। बत्तखों के अंडे एवं मांस बहुत लोग पसंद करते हैं। मशरूम की व्यावसायिक खेती कृषि, वानिकी एवं पशु व्यवसाय संबंधी अवशेषों पर की जाती है तथा उत्पादन के पश्चात् बचे अवशेषों को खाद के रूप में उपयोग कर लिया जाता है। उत्पादन हेतु बेकार एवं बंजर भूमि का समुचित उपयोग मशरूम गृहों का निर्माण कर किया जा सकता है। जैविक खेती के प्रचार-प्रसार के साथ जैविक उर्वरकों की मांग बढ़ी है। केंचुवा खाद के व्यावसायिक उत्पादन में भी आजीविका की अच्छी संभावना है। हमारे अन्नदाता किसान गरीब हैं और युवा बेरोजगार हैं। आजीविका प्रबंधनष पुस्तक उनका पथ प्रदर्शन करेगी।