त्रासदी by विनोद सागर ISBN 978-81-933482-5-3

त्रासदी

विनोद सागर

‘‘गधा।’’
आज यहाँ राजनीति का स्तर
गिर चुका है इतना ज़्यादा कि
अब तो नेता भी एक-दूसरे को
कहने लगे हैं बात-बात में गधा
और अब गधे ख़ुश होने लगे हैं
यह सोचके कि जहाँ गिद्ध-कौवे
विलुप्ति के कगार पर ही नहीं
बल्कि विलुप्त ही चुके हैं जहाँ से
वहीं हमारी आबादी आज यहाँ
घटने के बजाये होने वाली हैं
सवा अरब से कुछ ज़्यादा ही
क्योंकि देर से सही मगर आज
समझने लगा है इंसान हमें भी
अपना भाई समान तभी तो
पुकारने लगा है एक-दूसरे को
लेकर हमारा ही नाम ‘‘गधा।’’