संग्रह-मेरी यादों का by शिवदत्त श्रोत्रिय 978-81-933482-4-6

संग्रह-मेरी यादों का

शिवदत्त श्रोत्रिय

‘अब कोई नहीं होगा’
सुना है कि तुम जा रही हो,
अब सामने नजरों के मेरे कोई नहीं होगा
हर दिन जो तुम्हें देखा करता था
पर लगता है वैसा नजारा अब कोई नहीं होगा||
क्योंकि सुना है कि तुम जा रही हो...

कभी नज़र उठा कर देखा करते थे
तो कभी नज़र झुका कर छिप जाते थे
अचानक लगता था कि जैसे
सारे नज़ारे एकदम रुक जाते थे ||
पर लगता था कि ऐसा खेल अब कोई नहीं होगा
क्योंकि सुना है कि तुम जा रही हो..