Man Darpan मन दर्पण

मन दर्पण

माड़भूषि रंगराज अयंगर

जन्मतः अहिंदी भाषी, छत्तीसगढ़ बिलासपुर (एकीकृत मध्यप्रदेश) से अभियाँत्रिकी. 2015 में इंडियम ऑयल कॉर्पोरेशन से सेवानिवृत्त. 14 - 15 वर्ष की आयु से लेखन। शुरुआत कविता से फिर कहानी व लेखों की तरफ अग्रसर। प्रथम प्रकाशन दशा और दिशा (ISBN 978-93-85818-63-9) को आपका साथ मिला बहुत बहुत आभार।

मन दर्पण से..
आप डूबे जाइए और जग हँसेगा,
हँस सकोगे जब डूबता सा जग दिखेगा ?
                                      "सरताज"

इशारों के तुम्हारे भीए अदा यूँ हँसीन होती है,
‘‘मत छूना मुझेए मुझको बड़ी तकलीफ होती है’’
अगर आदम ने हव्वा से कहा होता मत छना,
न होता सार जीवन का,न यह संसार ही होता।
                                        "मत छूना मुझे"

मँझधारों किनारों से, धारों पतवारों से,
मँाझी के इशारों से, चंदा से तारो से,
पूछो जी पूछो............
ये राज कहाँ से पाकर पहुँची है तुम तक ?
                                        "पूछो जी पूछो।"

जब ये नयन ज्योति है जागी,
बस ले मेरी निद्रा भागी,
धड़कन ऐसे तड़पन लागी,
बना गई आखिर बैरागी।
                                        "रो जाता हूँ।"

अब भी समय है सँभल जाओं ओ नौजवाओं देश के,
मातृमंगल चरण चूमो ले चलो संदेश ये -
‘‘देश मेरी माँ सभी नागरिक परिवार जन’’
‘कैसे करूँ मैं उनकी रक्षा’ -तुम करो चिंतन गहन,
                                        "मेरा भारत महान।"

जो भूल सको बचपन-तो भूल जाईए,
टपके थे आसमान से जैसे हो आज तुम ?
अपना न सही उस कोख का तो ख्याल कीजिए,
खून जिसका खाद था बचपन के बाग का।
                                        "बचपन।"

यदि रावण अपने पक्ष में प्रस्तुत करता
सीताजी के अग्नि परीक्षा की रिपोर्ट,
तो क्या मृत्यु दंड दे सकता था,
उसे यह सुप्रीम कोर्ट ?
                                        "मृत्युदंड।"

आज मेरी बेटी का खून हो गया,
दस साल बाद आज वह सकून खो गया,
किसी गैर ने नहीं एक रिश्तेदार ने किया,
जिस पर किया था ऐतबार, उसने मार ही दिया
पुत्री विलाप घर पर जो कर रहा होगा,
समझेगा वही बेटी बिना मेरा हश्र क्या होगा।
                                        "हश्र।"

बोली, हिंदी सरल है, इसको सभी अपनाई,
खुद जटिल हिंदी के परचे आप बाँटे जाइए
                                        "छींटाकशी।"